शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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दैवस्पर्श - भाग दुसरा | गद्य साहित्य | ध्येयवेडा | ७ | |
उजाडून आले | कविता | अनुबंध | २ | |
व्यवहारज्ञान (३) | गद्य साहित्य | मनीषा२४ | ३ | |
विरह | कविता | वैशाली प | ||
जाणीव | कविता | वैशाली प | ||
व्यवहारज्ञान (२) | गद्य साहित्य | मनीषा२४ | १ | |
भांडार हुंदक्यांचे....! | कविता | गंगाधर मुटे | ६ | |
बायको हरवली आणि (हुश्श ) सापडली | गद्य साहित्य | कुशाग्र | ११ | |
सोपे वाटेल असे शब्दकोडे २२ | गद्य साहित्य | मीरा फाटक | १४ | |
मनं भाग-२ | कविता | वैशाली प | ||
सुकोमल फुलपाखरा | कविता | विजया केळकर= | ४ | |
व्यवहारज्ञान | गद्य साहित्य | मनीषा२४ | २ | |
मनं | कविता | वैशाली प | ||
ठाव | कविता | वैशाली प | ||
'मी आहे ना सांग? ' | कविता | मुग्धमानसी | १ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |