शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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तरही गज़ल -२ | कविता | केशवसुमार | ६ | |
माझ्या मनची गंगा आणि तुझ्या मनच्या यमुनेचा | कविता | नरेंद्र गोळे | २ | |
रंगांशी जडले नाते! | गद्य साहित्य | अनु | १८ | |
ऋतू येत होते ऋतू जात होते | कविता | कारकून | ९ | |
पांचाली | कविता | मुक्तछंदा | ||
किती येत होते किती जात होते | कविता | केशवसुमार | ५ | |
मराठी विकी | गद्य साहित्य | शिवश्री | ||
सुधागड - २ | गद्य साहित्य | जीएस | १ | |
शब्द साधना - १४. | चर्चेचा प्रस्ताव | द्वारकानाथ कलंत्री | १७ | |
तरही गज़ल | कविता | मीनु | ७ | |
वलय | कविता | मुक्तछंदा | ||
(मोहरा) | कविता | चक्रपाणि | ७ | |
प्रीतिसंगम | कविता | टवाळ | ११ | |
फेड - जीएंची एक लघुकथा | गद्य साहित्य | छू | १८ | |
भुताचे घर | कविता | के. सौरभ | ६ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |