शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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बये दार उघड... | गद्य साहित्य | को अहम | ८ | |
गाव ते माझे.. | कविता | प्राजु | २ | |
दही वडा | पाककृती | नीला निलेश कौठेकर | १ | |
`सावळी कशाने झाली राधा गोरी ?` | कविता | प्रदीप कुलकर्णी | ५ | |
शैशव | कविता | मुग्धा रिसबूड | १० | |
आकाशासारखं.... आकाशाएवढं.. | कविता | चिन्नु | ७ | |
कधी ... | कविता | अदिती | ८ | |
समंध | कविता | सुवर्णमयी | ४ | |
डेविड कोपरफ़िल्ड | चर्चेचा प्रस्ताव | गोरेप्रकाश | ३ | |
नियोजन | गद्य साहित्य | स्वराज | १ | |
नार्सिसस | कविता | मिलिंद फणसे | ३ | |
कोजागरी पौर्णिमा | गद्य साहित्य | गौरीदिल्ली | ४ | |
'तू असा..तू तसा..' | कविता | प्रज्ञा प्रधान | १ | |
ऍबी ग्रेंजचे 'प्रकरण' ! (३) | गद्य साहित्य | अदिती | १२ | |
उखरी | पाककृती | नीला निलेश कौठेकर | २ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |