शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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असं एकही हृदय नाही | कविता | सनिल पांगे | ||
नवा विचार | कविता | सनिल पांगे | ||
वाद - विवाद १ | चर्चेचा प्रस्ताव | पल्लवी २००६ | २२ | |
विचार | कविता | सनिल पांगे | १ | |
त्रिशंकू!! | गद्य साहित्य | अनमिक | १७ | |
पर्वणी | गद्य साहित्य | आनंदघन | १० | |
अनंत | कविता | पुलस्ति | ||
मरणाचा अर्थ | कविता | पुलस्ति | ||
अश्रूंचे मुखवटे | कविता | साकार | ७ | |
लग्न | कविता | स्मरण | ||
माझ्या काही चारोळ्या ४ | कविता | शैलेन्द्र बार्शीकर | ३ | |
माझ्या काही चारोळ्या ३ | कविता | शैलेन्द्र बार्शीकर | ||
माझ्या काही चारोळ्या २ | कविता | शैलेन्द्र बार्शीकर | १ | |
माझ्या काही चारोळ्या १ | कविता | शैलेन्द्र बार्शीकर | १ | |
माझी शाळा | गद्य साहित्य | स्वाती दिनेश | १२ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |