शीर्षक | प्रकार | लेखक | अद्यतन | प्रतिसाद |
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गाढवही गेले.. | कविता | मिलिंद फणसे | १७ | |
केतकरी पोटशूळ | चर्चेचा प्रस्ताव | वृकोदर | १४ | |
साहाय्य | गद्य साहित्य | प्रणव सदाशिव काळे | २१ | |
महती आणि माहिती | Basic page | प्रशासक | ७९ | |
चौर्य/अनुकरण | कविता | मिलिंद फणसे | १६ | |
राजीवांनो | कविता | मिलिंद फणसे | १ | |
हवी आहेत:मनोगतींकडून भूते | गद्य साहित्य | अनु | ३२ | |
भेटणे प्रेयसीला - विविध वृत्तांत! | कविता | महेश | २२ | |
सर्वत्र तू होतास.. | कविता | अनु | १८ | |
वाटसरू | कविता | मिलिंद फणसे | ८ | |
चिरंजीव चर्चा | चर्चेचा प्रस्ताव | चाणक्य | ६ | |
तेच माणुस आपले असते... | कविता | भुमिका | ३ | |
हे जग असेच असते | कविता | भुमिका | ९ | |
ती तू आणि मी ...... | कविता | स्वप्निल व्यास | ६ | |
कुजके पाष | कविता | सन्जय | २ |
शीर्षक | प्रतिसादक | लेखन | अद्यतन |
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माहितीपर लेख आहे ! | संजय क्षीरसागर | आचार्य बोधीधर्म आणि झेन पंथ | |
तुमचे अध्यात्माच्या व्याख्येपासूनच गोंधळ आहेत ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बर! | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मन किंवा विचार हा विक्षेप आहे ! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
बुद्धावस्थेची तुम्ही फक्त कल्पना करतायं! | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
विक्षेप | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
जाणीव | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
पहिल्या मुद्याच्या अनुषंगानं आणखी थोडं | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
मनाचं निस्सरण म्हणजे | संजय क्षीरसागर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! | |
अध्यात्म... | सोकाजीत्रिलोकेकर | अष्टावक्र संहिता : ७ : मला एकाग्रता साधावी लागत नाही कारण मला विक्षेप नाही ! |