कदाचित |
जयश्री अंबासकर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
राधा - वेणू |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
पाश आपोआप गेले तोडले! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
केव्हातरी... |
सावित्री |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
एकमेकांना तसे आतून ते सामील होते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
मी कुणाहुन ना कमी ... |
टवाळ |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
किनारा चालला आहे, कुणाला शोधण्यासाठी? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
सटवी लिहून जाते भाळी कथा समस्त |
मिलिंद फणसे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
अळी मिळी गुपचिळी |
जयश्री अंबासकर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
पाठीवरीच माझ्या माझे बिऱ्हाड आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
माझिया डोळ्यात होती आसवे सा-या जगाची! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
ठेवले शाबूत त्यांनी पंख ऐसे वाटले! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
कवीचे प्राक्तन |
उ. म. |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
हे मनदेवा !! |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
मी प्रेत जीवनाचे घेऊन आलो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
हा मानवी मनाचा गुंता कसा सुटेना - |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
मारेक-यास माझी कळली कशी खुशाली? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
नस्ती विवंचना !! |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
काळजाला माझिया पडली किती होती घरे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
तगमग |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
स्वप्नांच्या गावी.. |
नेहा दाबके |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
चिखलमातीत पडल्याने जरी डागाळले होते |
मृण्मयी |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
तुला पाहुनी भास झाला मनाला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
वणव्यात वास्तवाच्या स्वप्ने जळून गेली! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
जायचे होते मलाही रक्त माझे द्यायला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |