आले कशीबशी मी चुकवून या जगाला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
शिकवण |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
दगड |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
आठवण |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
तिचे पाहणे पाहणा-यास जाळी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
माझेच दु:ख बहुधा इतके भिकार होते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
अनुभव - कोणती रचना सुयोग्य ? |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
मज घाल तू साद मज बोलवाया |
टवाळ |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
सावलीनेही स्वत:च्या टाळले होते मला! (संकेत तरही गझल) |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
तुझ्या स्मृतींच्या सरोवरी डुंबतो कधीचा! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
ओढ |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
सहसा कुणास आम्ही काळीज देत नाही! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
(सारा हिशेब द्यावा लागेल एक दिवशी) |
संजय क्षीरसागर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
टाळ बोले माझ्या मनीं - |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
मी न उलगडली तुझ्या पहिल्याच पत्राची घडी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
निष्पर्ण जाहले तुझ्याविना |
जयश्री अंबासकर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
नकोच शिवबा, जन्म इथे तू पुन्हा कधी घेऊ - |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
निघाली खाशी हो स्वारी ... |
विदेश |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
स्वप्नात काल माझ्या येऊन कोण गेले? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
सदिच्छा.. |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
शब्द जेथे संपतो, माझी तिथे सुरुवात होते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
सारा हिशोब द्यावा लागेल एक दिवशी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
घर एकटे |
उ. म. |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
"घर, मृण्मयी, तुझे हे; ही पंढरी सुखाची" |
मृण्मयी |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
कुणाला हे दिसू नाही दिले मी आंधळा आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |