जरासा हर्ष झाला |
निशिकान्त दे |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
दुख |
सिलिकोनबाबु |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
फरक |
जयन्ता५२ |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
सार संसाराचे |
सखी १९८५ |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
ऐकुनिया त्यांच्या वचना -- |
कुशाग्र |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
माकडगाणे .... |
शशांक पुरंदरे |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
स्तोम इतके नाटकाचे |
निशिकान्त दे |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
एकाकी मी सुखात आहे |
निशिकान्त दे |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
टिकले तुफान काही |
गंगाधर मुटे |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
भाग्य |
राजेंद्र देवी |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
तूच तू ...! |
मनिष भाटे_२००८ |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
काय म्हणावे प्रेमाला ते खरोखरी मज समजत नाही! |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
पाऊल तुझे पडले अन् धरणीचे सोने झाले! |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
दारू, सत्ता, पैसा, नारी; ध्येय वेगवेगळे |
मिलिंद फणसे |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
वाट हरवते फुलांत तेव्हा, काट्यांनाही वाट पुसावी! |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
साथ... |
राजेंद्र देवी |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
किती काही |
जयन्ता५२ |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
‘पहाटस्वप्न’ (कविता) |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
हेच खरे |
मिलन टोपकर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
नाही चाखली चव 'लाडू'ची- (विडंबन) |
विदेश |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
रविकिरणांच्या दिंडीमधला वारकरी मी! |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
मरणही म्हणाले किती भोगशी तू? सजा भोगण्याचा कडेलोट झाला! |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
मेघ भरूनि येताना......... |
दीपकशांपवार |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
हेलकाव्यानेच एका चाललो झोकात मी.... |
प्रोफ़ेसर |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
दरवळ |
राजेंद्र देवी |
११ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |