कविता |
खरेच मी फारसा कुठे येत जात नाही! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ३ आठवड्यांपूर्वी |
कविता |
... तुजमुळेच जगणे खरे! |
प्रदीप कुलकर्णी |
१२ वर्षे ३ आठवड्यांपूर्वी |
कविता |
काल होती शांतता निश्चल इथे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ३ आठवड्यांपूर्वी |
कविता |
काय गर्दी माजली सर्वत्र गाजरपारख्यांची! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ४ आठवड्यांपूर्वी |
कविता |
मी बोललो काही जरी, होतात का ही भांडणे? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
अधीरता सोयऱ्यांतली, त्या कलेवराला दिसून आली! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
चतुर्भुज होउनी आपापले अंगण मिळाले |
मिलिंद फणसे |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
कोणतीही नोकरी घ्या, हाच शिष्टाचार आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
काव्य हृदयातून यावे लागते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
और जाहले नाते आज बापलेकांचे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
जे जे करावयाचे, ते ते करून झाले! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
नसतोच कोणताही अधिकार माणसाला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
दुपट्टा घसरणे वगैरे वगैरे |
गंगाधर मुटे |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
घर कितीक वेळेला मीच मोडले माझे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
मला जसे सुचले, जमले तसे जगत गेलो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
हे असे होईल काही, वाटले नव्हते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
‘स्वप्न’ या प्रतिकावरील ५ निवडक शेर....... |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
असे मी काय वदलो की, करावा वाद लोकांनी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
तुझी साथ म्हणुनीच तगलो कदाचित! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
केवढा हा मुक्त कारावास आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
सावरावे जरा |
जयश्री अंबासकर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
एकटा गेला, परंतू पावले सोडून गेला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
सावलीनेही स्वत:च्या टाळले होते मला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे १ महिन्यापूर्वी |
कविता |
कल्लोळ काळजाचा नाही कळू दिला मी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
कदाचित |
जयश्री अंबासकर |
१२ वर्षे २ महिन्यांपूर्वी |