शब्दब्रह्माचाच मी आहे पुजारी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
तारा कुणी मनाच्या या छेडल्या अचानक? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
विसकटलेली घडी बसवती समर्थ स्वामी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
काय तो वदणार मजला पाठ आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
ओढणी.. साजणी.. |
शशांक पुरंदरे |
१२ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
कर्ज |
जयन्ता५२ |
१२ वर्षे ४ महिन्यांपूर्वी |
मी तृषित नि तू श्रावण - मी हृदय नि तू स्पंदन |
टवाळ |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
मीहून स्वत: स्वप्नांच्या सरणावर गेलो होतो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
तू नभीचा चंद्रमा असशी, धरेची धूळ मी |
नरेंद्र गोळे |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
खरेच जादू, प्रिये! तुझ्या पैंजणात आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
शीड नाही, ना सुकाणू! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
भ्रमंती |
कुमार जावडेकर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
चालले ते ठीक आहे! छान आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
समजून घे तू |
जयन्ता५२ |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
जमेल तितकी हझल अरे मी करून घेतो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
तू सोबतीस जोवर, तोवर मजेत आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
हृदयात वंचनेचा ताजा प्रहार होता |
उ. म. |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
"वारूणी " |
अनंत खोंडे |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
उठला दुरावा दोन टोकाच्या मनांचा... |
अजय जोशी |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
वृत्त गझलेचे उचलले, अन् गझल झाली! |
चैत रे चैत |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
तुझी पाउले |
उ. म. |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
मरणे झकास झाले.! |
तन्मय फाटक |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
दोन मुक्तके |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
घोट दु:खांचा रिचवला, अन् गझल झाली! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कशास चांदणे हवे? हवा कशास चंद्रमा? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |