कविता |
स्वप्नांत झिंगण्याचा आता सराव झाला! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
घराचे दार वाऱ्याने जरासे हालले होते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
कुणी टाकला डाका |
चित्त |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
मी नाही रडणार उद्या |
वैवकु |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
दगदगीमधे नित्याच्या प्रेमाला फुरसत होती! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
पाहिलेस तू करून जे तुला करायचे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
असेच बंधनात राहू दे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
ज्यांच्यापुढे झुकावे, दिसले असे न कोणी! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
सुगंधी गर्भ ज्याचा तोच दरवळणार गाभारा! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
भाबड्या मनाला माझ्या पढवून नको ते बसलो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
तुझा आभासही आता मनाला वाटतो दावा! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
कधी मी आगही प्यालो, कधी मी झोकला वारा! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ५ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
आता खरी कळाली गोडी मला फळांची! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
विस्मृती झरतात संततधार हल्ली! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
पावले ऋतूंची मीही पाहणे जरूरी होते! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
काल चाखली तेव्हा मजला अर्थ कळाला डुलण्याचा! |
चैत रे चैत |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
दिसावयाला हरेक माणूस संत आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
काळजाची कांच |
जयन्ता५२ |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
मी तिच्या पत्रातला मजकूर होतो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
जाता जाता |
एक अज्ञात |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
भोवती अंधार वारेमाप आहे! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
सुज्ञपणाचा बुरखा मजला कधी न आला पांघरता! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
फळे चाखली तेव्हा मजला अर्थ कळाला फुलण्याचा! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
कळेना लागला माझ्या जिवाला ध्यास कोणाचा? |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |
कविता |
मी तुझ्या दारात होतो! |
प्रोफ़ेसर |
१२ वर्षे ६ महिन्यांपूर्वी |